Thursday, March 2, 2017

शादी का माहोल

मेरा नाम समीर है । मैं ३६ साल का नौजवान हूँ. सुंदर लड़की को देखकर मुझे अच्छा लगता है. छोड़ने की इच्छा हो जाती है. मन करता है उसके नर्म नर्म गालों को चुन लूँ और उसके होठों को चूस लूँ. अपनी बाहों में भरकर उसकी चुचियों को दबा दूँ और अपने लुंड को उसके बुर में दाल कर छोड़ डालूँ. शादियों के दिन थे और शादी का माहौल था. मेरे तीसरे छोटे सेल की शादी थी और हमलोग ससुराल में इकठ्ठा हुए. काफ़ी लोग होने की वजह से हर कमरे में कई लोगों का इन्तेजाम था. मेरी सलेज यानी पहले सेल की बीवी का नाम था सरला. गहुआ रंग, भरा हुआ बदन, ३४ २६ ३४ के आन्करे जैसा, गदराई जवानी और गज़ब की sundar. इच्छा करती की दबोच कर बस चबा ही डालूँ. इठलाती हुई जब चलती अपनी सारी को सामने हाथ से छूट के पास संभालती हुई तब मन करता की बस इसकी गर्म छूट को क्यों न मैं ही पकड़ लूँ और मसलता रहूँ. सारी से वोह अपनी मस्त और तनी हुई चुचियों को भरसक दहकती रहती लेकिन वोह बगल से ब्लौसे के मध्यम दीखता रहता. झुकी हुई निगाहों से देखती और मुस्करा देती. हमारा लौदा और खड़ा हो जाता. शाम के करीब ४ बजे थे और मैं उसकी तरफ़ देखे जा रहा था.तभी खिलखिलाती हुई बोली, “क्यों जीजाजी, क्या चाहिए ?” मेरे मुह से निकल पड़ा, “तुम.” चौंक कर बोली, “क्या कहा ?” मैंने जवाब दिया, “मेरा मतलब तुम्हारे हाथ की एक कप ची.”ची पीकर जैसे तैसे शाम गुजरी और रात हुई. एक कमरे में ऊपर पलंग पर मर्दों को सोने के लिए कहा गया और ठीक निचे ज़मीन पर औरतों के लिए गद्दे लगाये गए. किस्मत देखिये पलंग के जिस किनारे पर मैं था, ठीक उसके निचे ज़मीन पर सबसे पहले सरला का बिस्तर था. मन में बड़ी गुदगुदी हो रही थी. लुंड था की उठे जा रहा था. मैंने ठान लिया की बच्छु आज न चूकना. बस मौका देख कर पहल कर ही देना. फिर सोचा की एक बार तोह तो लेकर देखूं. मैंने सरला से पुछा, “सरला, ये मेरा तकीया एकदम किनारे में क्यों रख दिया. पलंग पर बीच में रखती.” वोह बोली, “क्यों आप करवट बहुत ज्यादा लेते हैं ?” फिर आहिस्ते से बोली, “प्लेअसे आप मेरे ऊपर मत गिर जयीगा.” दोस्तों, उसका यह बोलने का अंदाज़ ऐसा था की कोई बेवकूफ ही समझ न पाए. फिर क्या था, मैंने चादर तानी, लुंड हाथ में लिया, और लेते हुए सबके सोने का इंतज़ार करने लगा.आख़िर रात कुछ गुजरी और थके हुए सभी लोग एक एक कर गहरी नींद में सो गए सिवाय मेरे और सरला के जो की मैं जानता था. हिम्मत जुटा कर मैं आहिस्ता से ऊपर पलंग के किनारे से उतर कर निचे ज़मीन पर सरला के बगल में लेट गया. कमरे में पहले से ही अँधेरा था. मैंने पहले उसकी चादर आहिस्ता से थोडी सी अपने ऊपर ले ली और अपने बदन ko उससे सताया मनो कह रहा हूँ की मैं आ गया. वोह चुपचाप रही और मेरी हिम्मत बढ़ी.मैंने अपना हाथ अब धीरे से उसके कमर पर रखा और उसकी नरम लेकिन गर्म गर्म निघती पर सरकाते हुए उसकी चूची पर रख दिया. वोह कुछ नही बोली. मैंने अब उसकी चूची को दबाया. वोह शांत रही. और मैं मदहोश होने लगा. लुंड खुशी के मरे फद्फदाने लगा. लुंड को मैंने उसकी गांड से चिपका दिया. और हाथ से दूसरी चूची को दबाने लगा. चाहत बढ़ी और मैंने अपने हाथों से उसकी निघती को ऊपर उठाया. अब मेरा हाथ उसके बदन पर था. हाथ को ऊपर लेट हुए और उसके नर्म नर्म बदन का मज़ा लेते हुए मैंने उसकी नंगी चुचियों को छूया. गोल और एकदम सख्त. नर्म लेकिन गरम. निप्प्ले को दबाया और कसकस कर अब मैं चुचियों को दबा रहा था. होठों से मैं उसके गर्दन को चूमने लगा. अब लुंड छोड़ने के लिए बेताब हुआ जा रहा था. आख़िर कब तक सहता. कोई आवाज़ भी नही कर सकते थे.एक हाथ मैंने उसकी गर्दन के निचे से घुसकर उसकी तनी हुई चूची पर रखा और दूसरा हाथ मैंने सरकते हुए उसकी छूट पर रख दिया. छूट पर घने बाल थे लेकिन फिर भी एकदम गीली थी. यानी चुदवाने के लिए तैयार. लुंड तो बुर में घुसने के लिए बेताब था ही. मैंने अपनी ऊँगली उसके बुर के दरार को छूते हुए अन्दर घुसा दी. उसने एक आह सी भरी. वोह भी चुदवाने को एकदम तैयार थी.उसके कान के पास मुह ले जाकर मैंने फुसफुसाकर कहा, “मैं बाथरूम जा रहा हूँ, तुम थोडी देर बाद धीरे से आ जाओ जानेमन.” आहिस्ता से उठकर दबदबे पो से मैं बाथरूम के अन्दर घुस गया और दरवाज़ा हल्का सा खुला रख इंतज़ार करने लगा. पाँच मिनट बाद सरला आयी और जैसे ही अन्दर घुसी मैंने दरवाज़ा बंद कर चिटकनी लगा दी. अब क्या था. मनो सहनशीलता का बाँध बस टूट गया. मैंने कास कर उसे अपनी बाँहों में भरा और अपने होठ उसके धधकते होठों पर रख ज़ोर ज़ोर से चूसने लगा. क्या होठ थे. जैसे गुलाब की पंख्दियाँ. ऐसा तसते की बस नशा आ गया. एक हाथ से मैंने उसके बाल पकड़ रखे थे चूमते हुए और दूसरे हाथ से मैं उसकी चुचियों को निघती के ऊपर से ही मसल रहा था. मेरा लुंड पजामा के अन्दर एकदम खरा हुआ परेशान हो रहा था. एक्स्सितेमेंट होने के बाद कपड़ा बहुत बुरे लगता हैं. नंगा बदन ही अच्छा लगता है. मैंने तुंरत अपने पजामे का नादा खोल उसे हटाया. अंडरवियर निकल फेंका. टीशर्ट उतर नंगा हो गया.उसकी निघती के बटन को सामने से खोलना शुरू किया. जल्दी से उसके बदन से निघती निकली, ब्रा के हूक को पीछे से खोला, और चूमते हुए दबाते हुए, कास कास कर एक दूसरे को मसलते हुए पहले बेसब्री से उसकी नंगी आजाद चुचियों को हाथ में ले लिया. सख्त भी थी और नरम भी थी. गरम भी थी और टाइट गोल गोल भी थी. क्या कहूं बस गज़ब की चूचियां थी. दबाव तो चिटक चिटक जाए. लेकिन बहुत बहुत मज़ा आए. गहरी गुलाबी रंग की निप्प्लेस के चारो तरफ़ ब्रोव्न रंग का गोल्नुमा रोसे. सुगंध जो उसके शरीर से आ रही थी, और भी मदहोश किए जा रही थी. सेक्स का सुगंध बोला नही जा सकता. बस एन्जॉय किया जा सकता है. वोह अब भी पूरी तरह से नंगी नही थी. न्य्लों का टाइट अंडरवियर उसके बुर को छुपाये हुए था. उसे जब तय तो सरला काफ़ी शर्मा गयी और अपना मुह मेरी छाती में छुपा लिया. मेरा लंबा और फाद्फादाता हुआ लुंड उसके बदन को छूट के आस पास छूता जा रहा था. मैंने उसके थोडी को हाथों से उठाया अपनी आंखों की तरफ़. उसने अपनी आँखें बंद कर ली.मैंने उसे पलकों के ऊपर चूमा. दीवार के सहारे अपने लुंड को उसकी छूट के अगेंस्ट दबाया. उसके होठों को चूसा और चूसता ही रहा. उसकी नंगी गोल गोल मुलायम गरम सख्त सेक्सी चुचियों को खूब दबाया और मसला. आख़िर रहा नही गया और उसकी चूची को निप्प्ले सहित अपने मुह में भर लिया. उसकी दाहिनी चूची मसलते हुए, उसकी लेफ्ट चूची को मैं तसते ले कर चूस रहा था. मुझसे और रहा नही गया. मैंने मज़ा लेने के लिए उससे पुछा, “सरला रानी, तुम इतने दिन तक कहा छुपी थी ? छोड़ दूँ ?” उसने एक हाथ से मेरी पीठ को अपनी तरफ़ दबा रखा था और दूसरे हाथ से मेरे लुंड को अपने मुलायम हाथों से पकड़कर बोली, “जीजाजी, जो भी करना है, जल्दी से कीजिये.” मैंने कहा, “क्या करून ? बोलो न, जान. तुम तो एकदम मलाई हो मलाई.” उसने झट से जवाब दिया, “खा जाईये न.” “क्या क्या खाओं रानी. तुम बड़ी मस्त चीज़ हो यार.” उसने शरारती बैटन का मज़ा लेते हुए कहा, “जीजाजी जल्दी से घुसा दीजिये न.” मैंने और मज़ा लेते हुए उसके कान के पास फुसफुसाकर कहा, “क्या घुसाओं और कहाँ.” बोली, “धत, आप बहुत बदमाश हैं. मैं जा रही हूँ.”मैंने कास कर पकड़ तो रखा ही था. इन्ही बैटन में हम एक दूसरे के बदन से लिपट लिपट कर पता नही क्या क्या कर रहे थे. बस कुछ न कुछ पकड़ा पकड़ी मसला मसली चूसा चूसी चल रही थी. आख़िर मैंने कहा, “रानी, एक बार कहना पड़ेगा. सिर्फ़ एक बार. प्लेअसे.” पूछने लगी, “क्या कहूं जीजू ?” मैंने मज़ा लेते हुए कहा, “कह दो की मेरे बुर में लुंड दाल कर छोड़ दीजिये न.” उसने शर्म्माने के अंदाज़ से कहा, “चोदिये न, जीजू. और मत तदपैये.” मैंने भी देखा की अब ज्यादा देर करने में रिस्क है. मैंने अपना लुंड उसके बुर के दरार पर रगड़ते हुए एक धक्का लगाया. लुंड अन्दर घुस तो गया लेकिन मज़ा नही आया. चुदाई का मज़ा तभी है जब औरत को लिटा कर चोदा जाए. बाथरूम के फर्श पर मैंने सरला को लिटाया और उसके ऊपर चढ़ gaya. टांगों को फैलाकर अपना लुंड उअके बुर पर रखा और घुसाया.
उसने भी थोडी सी मादा की और अपने बुर से मेरे लुंड को समेत लिया. होठ चूसते हुए, चुचियों को दबाते हुए मैंने चोदना शुरू किया. वोह भी निचे से गांड उठा उठा कर चुदवाने लगी.क्या चीज़ बने है ऊपर वाले ने यह चुदाई. बहुत बहुत मज़ा आता है. जिसने चुदाई की है उसे यह पढ़कर महसूस हो रहा होगा की हम दोनों कितना स्वाद ले रहे होंगे चुदाई का. बीच बीच में छोड़ते हुए, उसकी चूची को चूस भी रहा था. चुदाई लम्बी रखने के लिए मैंने स्पीड मीडियम ही राखी. चूची चूसते हुए और भी कम. आख़िर में लुंड ने जब सिग्नल दिया की अब मैं जह्दने वाला हूँ, तब मैंने कास कास कर चुदाई ki. चोदता रहा, चोदता रहा, स्ट्रोक्स पे स्ट्रोक्स लगता रहा. और वोह उचल उचल कर चुदवाई जा रही थी. ऐसा आनंद आ रहा था की मालूम ही नही पड़ा की हम दोनों कब एक साथ झाड़ गए. जल्दी से हमने कपड़े पहने और बहार निकलने के पहले मैंने सरला को कास कर अपनी बाँहों में जकडा और चूमते हुए कहा, “सलेज साहिबा, वादा करो जब भी मौका मिलेगा तो चुद्वओगी.” “आप बहु पाजी है” कह कर वोह दबे पो चली गयी.........

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